श्रद्धा , शक्ति , सम्मान स्वरूपा नारी का महत्व जानिये Various info Studytoper

Ashok Nayak
0
सामाजिक संस्थाओं द्वारा नारी - उत्थान सम्बन्धी प्रस्तावों की भरमार, संविधान के प्रावधानों की घोषणाएं तथा नारी - कल्याण सम्बन्धी वर्षों से चले आ रहे आन्दोलन नारी के प्रति हमारी अवधारणाओं में परिवर्तन नहीं कर सके हैं। दहेज के नाम पर हत्याएं, आत्महत्याएं एवं कुल - वधुओं को दी जाने वाली भाँति - भाँति की प्रतारणाओं के समाचार प्रायः नित्य ही पढ़ने और सुनने को मिलते रहते हैं। कहने को हमने नारी को समान अधिकार प्रदान कर दिए हैं। उनको प्रोत्साहन देने के लिए आरक्षण की व्यवस्थाएं भी की जा रही हैं, परन्तु समग्ररूपेण परिणाम यह है कि नारी का माता - रूप तिरोहित हो गया है। नारी पुरुष वर्ग के निकट अधिकाधिक भोग की सामग्री बनती जा रही है। 

जर्मनी के दार्शनिक कवि गेटे ने भी नारी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि " अपना घर और अच्छी नारी स्वर्ण और मुक्ता के समान है। 

काल - प्रवाह के साथ नारी के कल्याण कारी स्वरूप का क्षरण होता गया और एक समय आया , जब कबीर आदि सन्तों ने उसको समस्त पापों का मूल मानकर सर्वथा निंद्य एवं त्याज्य बता दिया । हम आज भी नहीं सोच पा रहे हैं कि ऐसा क्यों कर सम्भव हुआ कि ' माता ' को नरक का द्वार अथवा संसार - सागर में निवास करने वाली छाया ग्राहिणी राक्षसी कहकर नारी की कदर्थना की गई । 

आधुनिक काल में मैथिलीशरण गुप्त ने चिर पीड़ा एवं कष्ट को नारी की नियति मानकर उसके प्रति अपनी हार्दिक संवेदना प्रकट की और नारी को करुणा के आलम्बन - रूप में प्रतिष्ठित कर दिया अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी । आँचल में है दूध और आँखों में पानी ।

कवि जयशंकर प्रसाद ने बादलों के पीछे से झाँकती हुई किरण के रूप में नारी के सहज कल्याणकारी स्वरूप का दर्शन किया और समाज को सावधान करते हुए कहा कि 


जिसे तुम समझे हो अभिशाप 

जगत की ज्वालाओं का मूल 

ईश का वह रहस्य वरदान 

कभी मत इसको जाओ भूल 

          ( कामायनी ) 


नारी के जीवन की विडम्बना यह है कि वह पुरुष को जन्म देकर तथा उसको सर्वसमर्थ बनाकर अपने को उसके प्रति समर्पित कर देती है । इसी से सबला होते हुए भी वह अबला कही जाती है । 

शारीरिक दृष्टि से नारी यद्यपि कोमलांगी है , तथापि वह पुरुष की अपेक्षा अधिक समर्थ ठहरती है । वह अपने शरीर के रक्त मज्जा द्वारा निर्मित एवं पोषित शरीरों को जन्म देती है और अपने वक्ष - स्थल स्थित स्तनों का अमृत - पान कराके उनके शरीरों का पोषण करती है । इतना होने पर भी यदि पुत्र कुपुत्र सिद्ध होता है - तब भी वह यही कहती है , जैसे भी हो , जो भी हो , जहाँ भी हो सकुशल रहो , सुख से रहो । ऐसी निःस्पृह उपकारी नारी के प्रति सामान्यजन को श्रद्धा और सम्मान के अतिरिक्त अन्य क्या भाव रखना चाहिए ?

 अवसर उपस्थित होने पर नारी ने अपने शक्तिशाली रूप को एक बार नहीं , अनेक बार प्रकट किया है । रानी दुर्गावती , झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई प्रभृति नारियों ने तो समरांगण में अपने विपक्षियों को आसमान के तारे दिखाए तथा श्रीमती इन्दिरा गांधी , श्रीमती भण्डारनायके आदि महिलाओं ने अपने विपक्षियों से नाकों चने बिनवाए हैं । 

नारी वस्तुतः पुरुष की प्रेरणा होती है । वह पुरुष को भौतिक जगत् और सूक्ष्म जगत् सर्वत्र सृजन की प्रेरणा प्रदान करती है । वह वस्तुतः कर्म क्षेत्र का रूप धारण करके जीवन में पदार्पण करती है । नारी हृदय की पहचान करती हुई महादेवी वर्मा ने लिखा है कि ' काव्य और प्रेम दोनों नारी हृदय की सम्पत्ति हैं । पुरुष विजय का भूखा होता है तथा नारी समर्पण की । पुरुष लूटना चाहता है तथा नारी लुट जाना । ' उसके इस उदात्त पक्ष की अवहेलना करके हम प्रायः उसकी अवमानना करते हैं । 

नारी वस्तुतः स्नेह और सहिष्णुता की प्रतिमा होती है । यक्ष के प्रश्नों का उत्तर देते समय एक सन्दर्भ में युधिष्ठिर कहते हैं कि माता भूमि से भी भारी ( बढ़कर ) है । नारी के इसी गौरवशाली पक्ष को लक्ष्य करके आधुनिक काल के स्वनामधन्य दार्शनिक प्रोफेसर भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ । राधाकृष्णन ने एक स्थान पर लिखा है कि " नारी का मधुर सम्पर्क पुरुष को जीवन के संघर्ष में एक प्रकार का रस प्रदान करता है । " हम सब जानते हैं कि नारी - प्रेम के नाम पर अनेक वीरों ने आश्चर्यजनक कार्य किए हैं और श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं । 

नारी व्यक्तियों का निर्माण करके वस्तुतः समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है । इतिहास साक्षी है कि अनेक महापुरुषों के निर्माण में नारी की - उनकी माताओं की , प्रमुख भूमिका रही है । नारी की अन्तर्निहित एवं अप्रतिम शक्ति को लक्ष्य करके आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व यूरोप के आदि दार्शनिक अरस्तू ने यह महत्वपूर्ण कथन किया था कि ' नारी की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति या अवनति आधारित है । " स्वतन्त्रता संग्राम के मध्य दुर्गा स्वरूपा नारियों के योगदान को देखकर महात्मा गांधी ने कहा था कि " नारी को अबला कहना उसका अपमान करना है । " 

आधुनिक काल की नारी सम्भवतः यह समझ बैठी है कि अर्थोपार्जन द्वारा उसके गौरव में वृद्धि होती है । परन्तु उसको समझ लेना चाहिए कि उसको ' स्वर्गादपि गरीयसी ' कहने के मूल में उसका परिवार की अधिष्ठात्री होना है । नारी वास्तव में श्रद्धा स्वरूपा होकर हमारे लघुत्व को महत्व की ओर अग्रसर । होने की प्रेरणा प्रदान करती है

नारी ! तुम केवल श्रद्धा हो

विश्वास रजत नग पग तल में । 

पीयूष - स्रोत - सी बहा करो 

जीवन के सुन्दर समतल में 

( कामायनी ) 

नारी जाति का सम्मान किया जाना चाहिए । वह श्रद्धा की अधिकारिणी और शक्ति की अधिष्ठात्री है । यदि इस दृष्टिकोण को अपनाकर हम नारी के प्रति अपने व्यवहार को मर्यादित करेंगे , तो निश्चय ही समाज उत्थान हो सकेगा ।

तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Sharing Button पोस्ट के निचे है।

इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो Comment Box में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल Personal Contact Form को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी ।

इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “variousinfo.co.in” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में Bookmark (Ctrl + D) करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी Subscribe करें।

अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे whatsapp , Facebook या Twitter जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद !





Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
Post a Comment (0)

READ ALSO- 

google ads
Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !